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Thursday, April 1, 2010

Chubby Desi Hardcore ~MAST mAAL ~मुझे पता था चुदना तो है ही सो कम से कम कपड़े पहन रखे थे!!!












"मजा आया बानो... देख तूने तो एक ही बार में दो हज़ार कमा लिये... और अभी तो आधा ही कार्यक्रम हुआ है। चल अब बस गाण्ड मराना है। तेल लगाया है ना गाण्ड पर?"

"अरे मेरी गाण्ड तो गुफ़ा के बराबर है... कितनी ही बार घुसो... पता ही नहीं चलता है... पर हां, मस्ती खूब ही आती है।"

"तो चल... जा अन्दर... और मरा ले अपनी गाण्ड !"

मैंने अपने कपड़े उतारे और फिर से अंधेरे कमरे में घुस पड़ी। पहले वाले ने प्यार से मुझे पीठ से चिपका लिया और मेरे बोबे पकड़ लिये। मैं घोडी बन गई और नीचे घुटने टेक दिये और बिस्तर पर हाथ रख दिये, मैंने अपनी दोनों टांगें फ़ैला कर अपने चूतड़ खोल दिये। उसका ठण्डा और क्रीम से पुता लण्ड मेरे गाण्ड की छेद से छू गया। देखते ही देखते लौड़ा मेरी गाण्ड में उतर गया। मुझे अब मीठी सी गाण्ड में गुदगुदी सी हुई और मैं सी सी करने लगी। वो मेरी चूंचियां मसलने लगा और लण्ड की मार तेज करने लगा। मुझे भी मस्ती आने लगी। मैं अपनी गाण्ड के छेद को कभी कसना और ढीला करने लगी, कभी अपनी गाण्ड को हिला कर और मस्ती करती ... पर साला का लण्ड कमजोर निकला... उसने मेरे बोबे दबा कर अपना वीर्य छोड़ दिया... मेरी गाण्ड में उसका वीर्य भर गया। फिर उसने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया।

अब दूसरे की बारी थी... मेरी गाण्ड में वीर्य का फ़ायदा यह हुआ कि उसका मोटा लण्ड मेरी गाण्ड में वीर्य की वजह से सीधा ही गाण्ड में घुस गया। उसका लण्ड मोटा और लम्बा भी था। थोड़ी ही देर में वो मेरे बोबे दबा दबा कर सटासट चोदने लगा। पर ये मेरा दाना भी सहला देता था। इससे मुझे भी तेज उत्तेजना होती जा रही थी। कुछ देर बाद वो भी झड़ गया। उसका वीर्य भी मेरी गाण्ड में सुरक्षित था, पर सीधे खड़े होते ही वो तो मेरी टांगो से लग कर बह निकला।

"अब्दुल भोसड़ी के, अब तो लाईट जला... " मेरी आवाज उनमें से एक पह्चान गया।

"अरे शमीम बानो... तुम...? !!"
मेरी आवाज सुनते ही उसमें एक बोल पड़ा। मैं चौंक गई। इतने में अब्दुल ने लाईट जला दी। मैं नंगी ही मुड़ कर उससे लिपट गई। ये मेरा आशिक रफ़ीक था। सुन्दर था, सेक्सी था, पर शर्मा-शर्मी में हम बस एक दूसरे को देखते ही थे। बात नहीं हो पाती थी, उसने मुझे लिपटा लिया।

"बानो, मेरी बानो... देखा भोसड़ी की, तू मुझे मिल ही गई, ये मेरा दोस्त खलील है !" रफ़ीक भावावेश में बह गया।

इतने में अब्दुल हिसाब करता हुआ बोला,"खेल खत्म हुआ... देखो... आपने मुझे पांच हज़ार दिये थे... इसमें से तीन हज़ार बानो के हुए... और ये दो हज़ार आपके वापस !"

रफ़ीक ने पैसे लेकर मुझे दे दिये... "नहीं ये बानो के हैं... इसका दीदार हुआ... मेरा भाग्य जागा... !"

मैंने पांच हज़ार लिये और पजामे की जेब में डाले। रफ़ीक को चूम कर मैं अब्दुल से लिपट गई।

"अब्दुल, इस गाण्डू रफ़ीक ने मेरी चूत में खलबली मचा दी है... मुझे चोद दे यार अब... "

अब्दुल से रफ़ीक की शिकयत करने लगी। मैं उसके बिस्तर पर चित लेट गई। अब्दुल मेरे ऊपर चढ़ गया और मुझे कस लिया और एक झटके से मुझे अपने ऊपर ले लिया।

"ले बानो... चोद दे मुझे आज तू... रफ़ीक... एक बार और इसकी गाण्ड फ़ोड डाल !"

मैंने अपनी चूत निशाने में रख कर लण्ड पर दबा दिया और हाय रे ... मेरी चूत में रंगीन तड़पन होने लगी। लगा सारी मिठास चूत में भर गई हो, इतने में गाण्ड में रफ़ीक का मोटा लण्ड घुसता हुआ प्रतीत हुआ। मैं सुख से सरोबार हो उठी। तभी खलील ने आना लण्ड मेरे मुख में दे डाला...

"हाय रे मादरचोदो...! आज तो फ़ाड दो मेरी गाण्ड... इधर डाल दे रे मुँह में तेरा लौड़ा... "

"बानो, सह लेगी ये भारी चुदाई... ।" मेरे मुँह में तो लण्ड फ़ंसा हुआ था, क्या कहती, बस सर हिला दिया। इतना कहना था कि भोसड़ी के अब्दुल ने लण्ड दबा कर चूत में घुसा डाला। उधर रफ़ीक ने भी गाण्ड में अपना मोटा लण्ड घुसेड़ मारा। लगा कि अन्दर ही अन्दर दोनों के लण्ड टकरा गये हों। मेरे जिस्म में दोनों लण्ड शिरकत कर रहे थे और दोनों ही मुझे उनके मोटेपन का सुहाना अहसास दिला रहे थे। मैं दोनों के बीच दब चुकी थी। दोनों लण्डों का मजा मेरे नसीब में था। अधिक नशा तो मुझे पांच हज़ार रुपया मिलने का था जो मुझे मस्ती के साथ फ़्री में ही मिल गया था। खलील अपने लण्ड से मेरा मुख चोद रहा था। मेरे बोबे पर रफ़ीक ने कब्जा कर रखा था। मैंने खलील के दोनों चूतड़ों को दबा कर पकड़ रखा था। और मेरी अंगुली कभी कभी उसकी गाण्ड में भी उतर जाती थी।

पर साला मरदूद... हांफ़ते हांफ़ते उसने मेरी तो मां ही चोद दी... उसके लण्ड ने वीर्य उगल दिया और सीधे मेरी हलक में उतर गया। लण्ड को मेरे मुख में दबाये हुये वीर्य उगलता रहा और मुझे अचानक खांसी आ गई। उसने अपना स्खलित हुआ लण्ड बाहर निकाल लिया। अब मेरी चूत और गाण्ड चुद रही थी। मेरा जिस्म भी आग उगल रहा था। सारा जिस्म जैसे सारे लण्डों को निगलना चाह रहा था। अन्दर पूरी गहराई तक चुद रही थी... और अन्त में सारी आग चूत के रास्ते बाहर निकलने लगी। लावा चूत के द्वार से फ़ूट पडा। मैं बल खाती हुई अपने आप को खल्लास करने लगी। इतने में अब्दुल भी तड़पा और वो भी खल्लास होने लगा... उसने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया और मुझे चिपटा लिया... उसका लावा भी निकल पड़ा... अब सिर्फ़ रफ़ीक मेरी गाण्ड के मजे ले रहा था... कुछ ही देर में उसका माल भी छूट पड़ा और मेरी गाण्ड में भरने लगा। मैं अब्दुल के ऊपर सोई थी और रफ़ीक मेरी पीठ से चिपका हुआ था।

"मेरी बानो... आज तू मुझे मिल गई... बस रोज मिला कर !"

"तू तो है चूतिया एक नम्बर का... भोसड़ी के, मेरे तो पचास आशिक है... तू भी बस मेरा एक प्यारा आशिक है... बस चोद लिया कर... ज्यादा लार मत टपका...! " मैंने कपड़े पहनते हुये कहा।

अब्दुल और खलील दोनों ही हंस दिये... उसके चेहरे पर भी मुस्कान तैर गई... उसने मेरी चूत पर चुम्मा लिया और चाट कर बोला... "बानो, यार तू है मस्त... मेरी जरूरत हो तो बस अब्दुल को बोल देना... " मेरा पाजामा थूक से गीला हो गया।
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